दीदी गौरैया
यह
भोली भाली गौरैय्या
कितनी है ये प्यारी मैय्या
नित्य सुबह यह
हमें जगाती
निज चहकन में विहग सुनाती
इसे वाटिका नहीं है भाती
क्योंकि इसके
हम हैं साथी
तिनका तिनका
चुनकर लाती
घर ही में घोंसला बनाती
जब हम रोते तब चुप रहती
जब हम हँसते
खूब फुदकती
जब पढते
फुलवारी जाती
मन ना भाये तो घर आती
रसोई में आवाज लगाती
मैय्या हमको
भूख सताती
आटे की लिट्टी जब पाती
खुश हो ऑगन में आ खाती
हमें भी इसकी याद सताती
जब यह कहीं घूमने जाती
नहीं दिखे तब पूछें मैय्या
कहँ गई दीदी गौरैय्या
— सत्यनारायण सिंह
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चिड़िया के बच्चे
चिड़िया के बच्चे सब मिलकर
इक दिन लगे मचाने शोर
हर दिन कच्चे दाने खा कर
मम्मी हम सब हो गए बोर।
कितने हैं पकवान जगत में
तुम क्यों नहीं खिलाती हो
वही दाल या चावल के
दाने ले कर आ जाती हो।
चिड़ियों का अलार्म
सुबह सुबह ही मेरी बगिया
चिड़ियों से भर जाती है
उनके चीं चीं के अलार्म से
नींद मेरी खुल जाती है।
वे कहतीं हैं उठो उठो
अब हुआ सबेरा जागो
उठ कर अपना काम करो
झटपट आलस को त्यागो।
—शरद तैलंग
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नील चिरैया
एक नन्हीं सी
नील चिरैया
पत्तों पत्तों छिपती जाए
गुनगुन गाए गीत सुनाए
दूर से देखे पास न आए
मैने सोचा
रख लूँ इसको
घर आँगन में भर लूँ इसको
हाथ फैलाऊँ हाथ न आए
नील चिरैया उड़ उड़ जाए
—प्रिया सैनी
घोंसला
मौसम आया जब रंगीन
चिड़िया लाई तिनके बीन
बना घोंसला एक नवीन
अंडे रक्खे उसमें तीन
—अज्ञात
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