ये सब क़ुदरत की बातें हैं
ये सब क़ुदरत की बातें हैं
जाने क्या-क्या हो जाता है
एक पानी बूँदों में रहता
एक सागर में खो जाता है।
ये सब कुदरत की बातें हैं।
माया का है अंबार जहाँ
धन दौलत बेशुमार जहाँ
पर उतरा नहीं ख़ुमार जहाँ
दीवारें स्वर्णिम होती हैं
लेकिन मख़मल के गद्दों पर
रातों को नींदें रोती हैं
और भूखा एक इंसान यहाँ
रोकर थककर सो जाता है।
ये सब कुदरत की बातें हैं।
जाने क्या-क्या हो जाता है,
एक पानी बूँदों में रहता
एक सागर में खो जाता है
अग्नि कह दो दाहक कह दो
या उसको दावानल कह दो
है एक मगर हैं कई रूप
जैसे जाड़ों की गर्म धूप
या गरमी में लू का प्रकोप
एक वो है जो चढ़ चूल्हे पर
भोजन भरपेट कराती है
और एक वो है जिसकी ख़ातिर
तकतीं हैं नज़रें कातर-सी
अँधियारे में इक बेबस की
एक नया आदमी आया है
देखें किस कोठे जाता है
ये सब कुदरत की बातें हैं।
जाने क्या-क्या हो जाता है,
एक पानी बूँदों में रहता
एक सागर में खो जाता है
इक फूल चुना था तुमने भी
इक फूल चुना था मैंने भी
तुमने भी सींचा था उसको
कुछ मुस्काकर कुछ सहलाकर
मैंने भी सींचा था इसको
कुछ बतियाकर कुछ बहलाकर
पर दोनों की किस्मत देखो
एक फूल चढ़ा दरगाहों पर
मंदिर में और मज़ारों पर
जो जन कर्तव्यों की ख़ातिर
अपना सर्वस्व लुटा बैठे
उन सब की अमर चिताओं पर
और दूजे का ये हाल हुआ
वो रो-रो कर बेहाल हुआ
जब भी कोई पाखंडी नेता
भाषण देने को आता है
वो राहों में बिछ जाता है
ये सब कुदरत की बातें हैं।
जाने क्या-क्या हो जाता है,
एक पानी बूँदों में रहता
एक सागर में खो जाता है
ऐसे ही इंसानी जीवन
ताश के पत्तों जैसा है
मत पूछो हालत कैसी है
मत पूछो आलम कैसा है।
जब पत्ते बँटने लगते हैं
और बाज़ी सजने लगती है
तो किसी के हाथों में दुग्गी
और कहीं इक्का आ जाता है
ये सब कुदरत की बातें हैं।
जाने क्या-क्या हो जाता है,
एक पानी बूँदों में रहता
एक सागर में खो जाता है
पर चाल चलें गर बेहतर-सी
तो पिट सकता है इक्का भी
इसलिए तो आस यही लेकर
थोड़े प्रयास ही करने पर
ये किस्मत बदल भी जाएगी
फिर फ़र्क न होगा पानी में
अग्नि की कई कहानी में
फिर फ़र्क न होगा फूलों में
मख़मल के गद्दों शूलों में
कुदरत भी गच्चा खाएगी
इंसानी फ़ितरत के आगे
पानी-पानी हो जाएगी।
9 जून 2006
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