अनुभूति में
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क्षितिज
गीतों में-
कुछ कदम हम चलें
घोर यह अँधेरा है
ये सब कुदरत की बातें हैं
व्यंग्य में-
आधुनिक गीता
अंजुमन में-
उनमें वादों को निभाने का हुनर होता है
उसका नहीं है हमसे सरोकार दोस्तों
ये कहाँ ज़िंदगी भी ठहरी है
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आधुनिक गीता
आधुनिक अर्जुन- |
सर, मुझे उसने किया आफर,
तू मेरा काम ऐसे कर,
मैं मालामाल कर दूँगा,
ये चेहरा लाल कर दूँगा।
मगर ये बेईमानी है,
भला इज़्ज़त गँवानी है?
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आधुनिक कृष्ण- |
व्यर्थ
की बात करते हो
व्यर्थ में तुम तो डरते हो
अमर अब बेईमानी है
और स्टेटस की निशानी है। |
आधुनिक अर्जुन- |
मगर पकड़ा तो जाऊँगा
मैं कैसे मुँह दिखाऊँगा
ज़माना मुझको कोसेगा
मैं ज़िंदा रह न पाऊँगा |
आधुनिक कृष्ण- |
अनाड़ी तुम पुराने हो
न इतना भेद जाने हो
समझ थोड़ी नहीं बाकी
भ्रष्ट वर्दी भी है खाकी
अगर पकड़े भी जाओगे
तुरंत ही लौट आओगे। |
आधुनिक अर्जुन- |
मगर ये पाप न होगा? |
आधुनिक कृष्ण- |
खाली हाथ थे तुम
जब कदम रखे थे धरती पर
खाली ही रहोगे क्या
तुम अपने वक्ते रुख़सत पर
धर्म तो ये नहीं कहता
चदरिया ज्यों की त्यों धर दो
अरे जब जन्म पाया है
तो थोड़े काम भी कर दो
यही कर्तव्य तेरा है
अभी छाया अँधेरा है
बात को फ़ील तू कर ले
शीघ्र ही डील तू कर ले। |
आधुनिक अर्जुन- |
मगर इज़्ज़त का क्या होगा?
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आधुनिक कृष्ण- |
इज़्ज़त कट नहीं सकती है
इज़्ज़त बिंध नहीं सकती
न गीली हो ही पाएगी
न आग उसको जलाएगी |
आधुनिक कृष्ण- |
भगवन, ज्ञान की तुमने भारी बरसात कर दी
मुझसे मेरी मुलाक़ात कर दी
बताए भक्त को प्रसाद अब कैसे चढ़ाना है? |
आधुनिक कृष्ण- |
कृष्ण मिलेगा जितना तुझको
उसका फिफ्टी घर पे लाना है। |
अब अफ़सर भी कमाता है, मातहत भी कमाता है
बिना खर्चे किसी फ़ाइल पे वो न पेन चलाता है
मगर हालत ये है कि अब पुराने कृष्ण अर्जुन को
देखकर नया गीता ज्ञान बस रोना ही आता है।
9 जून 2006
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