अनुभूति में संदेश त्यागी की रचनाएँ-
नई रचनाएँ-
कागज़ पर
चिराग
जिसमें एक दास्तान है यारों
परिवर्तन
सीमा
हमको ऐसी सज़ा दीजिए
क्षितिज
गीतों में-
कुछ कदम हम चलें
घोर यह अँधेरा है
ये सब कुदरत की बातें हैं
व्यंग्य में-
आधुनिक गीता
अंजुमन में-
उनमें वादों को निभाने का हुनर होता है
उसका नहीं है हमसे सरोकार दोस्तों
ये कहाँ ज़िंदगी भी ठहरी है
|
|
काग़ज़ पर
झुकता एक मस्तक हो,
या ख़त की दस्तक हो,
प्रियतम का मिलना हो,
पाँवों का छिलना हो,
इठलाती नदियाँ हों,
घबराती सदियाँ हों,
अर्जुन की उलझन हो,
या जलती दुल्हन हो,
बलखाती बेलें हों,
भीड़ भरी रेलें हों,
गाँवो की बातें हों,
लोरी की रातें हों,
फिर भूखे बच्चे हों,
चाहे घर कच्चे हों,
सियासत का शिकार हो,
या विरासत में विकार हो,
उसको जो दिखता है,
काग़ज़ पर लिखता है।
24 मार्च 2007
|