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उसका नहीं है हमसे सरोकार दोस्तों
ये कहाँ ज़िंदगी भी ठहरी है

 

सीमा

वो गिरे,
कुछ और गिरे,
थोड़ा और गिरे,
फिर इतना गिरे
कि
उनके गिरने की
कोई सीमा
नहीं रही,
और
अब
जब उठ रहे हैं
तो इतना उठ रहे हैं
कि उनके उठने की सीमा
उनकी योग्यता की
सीमा को
कब का लाँघ चुकी है।

24 मार्च 2007

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