अनुभूति में
धर्मेन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन'
की रचनाएँ-
गीतों में-
ऐसी ही रहना तुम
जब तक रहना जीवन में
जाते हो बाजार पिया
पानी और पारा
बाहर बरस रहे हैं बादल
क्षणिकाओं में-
बारह क्षणिकाएँ
अंजुमन में-
अच्छे बच्चे
कहे कौन उठ
काश यादों
को करीने से
खुदा के साथ यहाँ
गगन का स्नेह पाते हैं
गरीबों के लहू से
चंदा तारे बन रजनी में
चिड़िया की जाँ
छाँव से सटकर खड़ी है धूप
जाल सहरा पे
जितना ज्यादा हम लिखते हैं
जो भी मिट गए तेरी आन पर
दिल है तारा
दे दी अपनी जान
निजी पाप की
बाँध
महीनों तक तुम्हारे प्यार में
मिल नगर से
मैं तुमसे ऊब न जाऊँ
मौसम तो देखिये
छंदमुक्त में-
अम्ल, क्षार और गीत
दर्द क्या है
मेंढक
यादें
हम तुम |
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पानी और पारा
पूछा मैंने पानी से
क्यूँ सबको गीला कर देता है
पानी बोला प्यार किया है
ख़ुद से भी ज़्यादा औरों से
इसीलिये चिपका रह जाता हूँ
मैं अपनों से गैरों से
हो जाता है गीला-गीला
जो भी मुझको छू लेता है
अगर ठान लेता मैं दिल में
पारे जैसा बन सकता था
ख़ुद में ही खोया रहता तो
किसको गीला कर सकता था?
पारा बाहर से चमचम पर
विष अन्दर-अन्दर सेता है
वो तो अच्छा है धरती पर
नाममात्र को ही पारा है
बंद पड़ा है बोतल में वो
अपना तो ये जग सारा है
मेरा गीलापन ही है जो
जीवन की नैय्या खेता है
१ दिसंबर २०२३ |