अनुभूति में
धर्मेन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन'
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कहे कौन उठ
जितना
ज्यादा हम लिखते हैं
दिल है तारा
बाँध
मौसम तो देखिये
क्षणिकाओं में-
बारह क्षणिकाएँ
अंजुमन में-
अच्छे बच्चे
काश यादों
को करीने से
गरीबों के लहू से
चंदा तारे बन रजनी में
चिड़िया की जाँ
छाँव से सटकर खड़ी है धूप
जो भी मिट गए तेरी आन पर
दे दी अपनी जान
निजी पाप की
मिल नगर से
छंदमुक्त में-
अम्ल, क्षार और गीत
दर्द क्या है
मेंढक
यादें
हम तुम |
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चंदा तारे बन
रजनी में
चंदा तारे बन रजनी में नभ को जाती हैं।
सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं।
आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा
निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं।
खुशबूदार हवाएँ कितनी भी हो जाएँ पर
मीन सभी मरतीं जल से बाहर जो जाती हैं
सागर की करतूतें बादल लिख देते तट पर
लहरें आकर पल भर में सबकुछ धो जाती हैं।
भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें
किंतु अँधेरे में जाकर इक सी हो जाती हैं।
२३ अप्रैल २०१२
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