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हम-तुम
हम-तुम
जैसे सरिया और कंक्रीट
दिन भर मैं दफ़्तर का तनाव झेलता हूँ
और तुम घर चलाने का दबाव
इस तरह हम झेलते हैं
जीवन का बोझ
साझा करके
किसी का बोझ कम नहीं है
न मेरा न तुम्हारा
झेल लेंगें हम
आँधी, बारिश, धूप, भूकंप, तूफ़ान
अगर यूँ ही बने रहेंगे
इक दूजे का सहारा
२७ जून २०११ |