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बाँध
पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध
नदी चीर देती चट्टानों का सीना लेकिन
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध
पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध
जन्म, बचपना, यौवन इसका देखा इसीलिए
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध
मरते दम तक साथ नदी का देता है तू भी
तेरी मेरी मिट्टी का कोई नाता है बाँध
१६ मार्च २०१५
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