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अनुभूति में धर्मेन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन' की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
कहे कौन उठ

जितना ज्यादा हम लिखते हैं
दिल है तारा
बाँध
मौसम तो देखिये

क्षणिकाओं में-
बारह क्षणिकाएँ

अंजुमन में-
अच्छे बच्चे
काश यादों को करीने से
गरीबों के लहू से
चंदा तारे बन रजनी में
चिड़िया की जाँ
छाँव से सटकर खड़ी है धूप
जो भी मिट गए तेरी आन पर
दे दी अपनी जान
निजी पाप की
मिल नगर से

छंदमुक्त में-
अम्ल, क्षार और गीत
दर्द क्या है
मेंढक
यादें
हम तुम

 

क्षणिकाएँ

दूरिया

दूरियाँ आज भी उतनी ही हैं
मगर समय के साथ बढ़ता जा रहा है
उनको तय करने का खर्च

कवि

कवि मरता है जिस दिन
बहुत सारे लोग
खोजना शुरू करते हैं
उसका जन्मदिन

आँच

हमारे तुम्हारे बीच
भले ही अब कुछ नहीं बचा
मगर तुम्हारे दिल में जल रही लौ की आँच से
मैं आजीवन ऊर्जा प्राप्त करता रहूँगा
क्योंकि आँच को चलने के लिए
किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती

जुड़वाँ

जिंदा होने का अहसास
और मौत का डर
जुड़वाँ हैं

कल

बीते कल का घमंड
आज को विकृत करता है
विकृत आज
आने वाले कल को नष्ट कर देता है

सूरज

धरती के लिए सूरज देवता है
उसकी चमक, उसका ताप
जीवन के लिए एकदम उपयुक्त हैं
कभी पूछो जाकर बाकी ग्रहों से
उनके लिए क्या है सूरज?

मेरी कोई कविता

जब धरती नष्ट होने को होगी
इनसान बाँध रहा होगा अपना बोरिया बिस्तर
और बनाई जा रही होगी सूची जरूरी सामानों की
तब क्या मेरी कोई कविता...?

सदिश प्रेम

केवल परिमाण ही काफ़ी नहीं है
आवश्यक है सही दिशा भी
प्रेम सदिश है

एक चिंगारी

एक चिंगारी ब्रह्मांड बन गई
एक चिंगारी सूरज बन गई
एक चिंगारी धरती बन गई
एक चिंगारी क्या नहीं बन सकती!

संवेग

अत्यधिक वेग से उच्चतम बिंदु पर पहुँचने वाले को
स्वयं का संवेग ही नीचे ले जाता है।
नियंत्रित संवेग के साथ धीरे धीरे ऊपर चढ़ने वाला ही
उच्चतम बिंदु पर अपना संवेग शून्य कर पाता है
और इस तरह देर तक उच्चतम बिंदु पर रह पाता है।

प्रेम

प्रेम एक अंधा मोड़ है
जिससे गुजरते हुए जरूरी होता है
अतिरिक्त सावधनी बरतते हुए धीरे धीरे चलना

३ दिसंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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