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गगन का स्नेह पाते
हैं गगन का स्नेह पाते हैं,
हवा का प्यार पाते हैं
परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं
फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं
जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के खतरे कब डराते हैं
परिंदों की नज़र से एक पल बस देख लो दुनिया
न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है
फ़लक पर सब बराबर हैं यहाँ नाज़ुक परिंदे भी
अगर हो सामना अक्सर विमानों को गिराते हैं
जमीं कहती, नई पीढ़ी के पंछी भूल मत जाना
परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं
१ मई २०१६ |