अनुभूति में अमरेन्द्र
सुमन
की रचनाएँ—
नई रचनाओं में-
अपने ही लोगों को खिलाफ
एक पागल
बुचुआ माय
छंदमुक्त में-
अकाल मृत्यु
अगली पंक्ति में बैठने के क्रम में
उँगलियों को मुट्ठी में तब्दील करने की
जरुरत
एक ही घर में
धन्यवाद मित्रो
नाना जी का सामान
नुनुवाँ की नानी माँ
फेरीवाला
रोशनदान
व्यवस्था-की-मार-से-थकुचाये-नन्हें-कामगार-हाथों-के-लिये
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नुनुवाँ की नानी
माँ
सोते से
कोई नहीं उठाता अल-सुबह
अब स्कूल के लिये
जबरन नाश्ते में शामिल होने की
नहीं करता कोई खुशामद बार-बार
दरवाजे पर खड़ा
दिखता नहीं परेशां कोई कभी
टेम्पो आने की खबर पाकर पहले की तरह
चुटकी भर प्यार व
एक चुम्बन को तरस रहा
अर्से बाद पहली दफा
लोगों ने देखा भरी आँखों रोते नुनुवाँ को
ढरक रहे उसकी आँखों से
अविरल आँसू
और वह ढ़ूँढ़ता जा रहा
चन्दामामा
विक्रम-बेताल
परियों की कहानी सुना-सुना कर
प्रतिदिन अपने आगोश में
सुला जाने वाली
उस अच्छी-प्यारी, न्यारी नानी माँ को
बिना कहे छोड़कर चली गई जो उसे!!!
वह चाह रहा जानना
मम्मी-पापा से
मौसी-मामा से
बिना कहे कुछ
कब-क्यों और कहाँ
चली गई नानी माँ?
बच्चे के सवाल से
कलप रही आत्माएँ सबकी
निरुत्तर सभी
प्रश्नों की खड़ी शृंखला से
किसे मालूम
अनायास छोड़कर सभी को
क्यों और कहाँ चली गई वें
एक साथ कई-कई चुप्पियों के
टूटने की आपसी जिरह के बीच
सवालात वहीं के वहीं धरे रहे फिर भी उसके
आप ही बतला दीजिये न
रुठकर आखिर कहाँ चली गईं नानी माँ
थक-हार कर नाना जी से ही अंतिम सवाल ?
क्या बतलाऐ कोई कि
अब नहीं रहीं इस पृथ्वी पर नुनुवाँ की नानी माँ!!!
कि निर्धारित वक्त से पूर्व ही
वे चाहती रही होंगी चली जाना छोड़कर
रोते-विलखते नुनुवाँ को
गुलशन के अन्य फूलों को
कि उपर वाले की यही मर्जी रही होगी शायद।
कि वापस लौटेगीं जरुर एक दिन
बच्चे के बचे चुम्बन की खातिर
सबकुछ समझ चुका नुनुवाँ की
बातों को ही मानना पड़ा सच अंततः
रोते-रोते
थक-हार कर सोने की मुद्रा में
बुदबुदाए जा रहा था जो
जरुर आएगी एक दिन उसकी प्यारी-न्यारी नानी माँ!!!
३ फरवरी २०१४
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