अनुभूति में अमरेन्द्र
सुमन
की रचनाएँ—
नई रचनाओं में-
अपने ही लोगों को खिलाफ
एक पागल
बुचुआ माय
छंदमुक्त में-
अकाल मृत्यु
अगली पंक्ति में बैठने के क्रम में
उँगलियों को मुट्ठी में तब्दील करने की
जरुरत
एक ही घर में
धन्यवाद मित्रो
नाना जी का सामान
नुनुवाँ की नानी माँ
फेरीवाला
रोशनदान
व्यवस्था-की-मार-से-थकुचाये-नन्हें-कामगार-हाथों-के-लिये
|
|
नाना जी का सामान
बहुत दिनों से
घर के पूर्वी कोने में
सहेज कर रखे गए
चमड़े के उस बैग को जला दिया गया
नौकरी पाने की खुशी में
खरीद रखा था नाना जी ने जिसे चालीस वर्षों पूर्व
एक बड़े शहर के फूटपाथ पर पहली दफा
फेंक दिये गए पुराने पतलून
चिप्पी सटे जूते
फटी जुराबें
आईना-कंघी
उनकी अनुपस्थिति में भी
प्रति दिन एहसास करा जाता जो
उनकी बहुमूल्य उपस्थिति का
कबाड़ीखानें में लगातार हथौड़े की मार सह रहे
उस चार पहिया वाहन को भी बेच डाला गया
बहुत कम कीमत पर
आखिरी मर्तबा जिसे बनाने में खर्च करने पड़े थे उन्हें
माह भर के पेंशन के सारे रुपये
इस उम्र में थका देने वाला श्रम
बाबू जी के लिखे पोस्टकार्ड
माँ की ओर से भेजा गया दीर्घायु का आर्शीवाद
बच्चों को ढेर सारा प्यार
सब कुछ शामिल था उस कूड़े के ढेर में पड़े
एक छोटे से पत्र में
सँभाल रखा था जिन्हें नामालूम वर्षों से सिरहाने
नाना जी ने
देखते रहे सबकुछ सामने
उनके समय की व्यवस्था में ही प्रति दिन
आ रहे बदलाव को
अपने ही अधिकारों में
इस समय की पीढ़ी के अतिक्रमण को
प्रयास करते रहे ढ़ूँढ़ते रहने के
समय के अन्तर में परिवर्तन की मनोदशा को
चाह कर भी
नहीं कर पा रहे थे बयाँ
कि जिस चमड़े के बैग को जला दिया गया वेवजह
जीवन की कही-अनकही
कितनी यादें रही होंगी उससे जुड़ी
नाना जी अब नहीं करते परवाह
अपने सामानों की
निर्धारित स्थान पर सहेज कर रखने की जन्म से अपनी आदतों के
बावजूद
वे करते वही
उनकी पकड़ से कैच कर लिये जाने वाले
काम की तलाश में
निगरानी रख रहे बच्चों को पसंद आ रहा होता जो
३ फरवरी २०१४
|