अनुभूति में
सुबोध श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
छंदमुक्त-
कविता के लिये
चीखना मना है
तटबंध
तुम मेरे लिये
भूकंप
सिलसिला
अंजुमन में-
आदमी कितना निराला
जलते सूरज की आँखों में
पत्थरों के इस शहर में
पीपल की छाँह
वादियों में
संकलन में-
गंगा-
एक अनूठी संस्कृति
शुभ दीपावली-
दीपों की माला सजी
दुल्हन सी सजी धरती
पीपल-
पीपल की छाँव
रघुनंदन वंदन-
पावन एक स्वरूप है
ममतामयी-
नन्हीं सीखों से बड़ा
मेरा भारत-
प्यारा हमको देश
लाल किला
वर्षा मंगल-
रिमझिम के बाद
फूल कनेर के-
कनेर का प्यार
बेला-
बेला के फूल
मातृभाषा के प्रति-
हिंदी का संसार |
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सिलसिला
आदमी
आजीवन सीखता है
सलीका
छुटपन में
बड़ी अँगुली थामकर
नन्हे कदमों से नापता है
आँगन का दायरा,
रटता है
परिभाषाएँ घर आँगन सड़क की।
लड़कपन में-
समझता है
छुटपन की रटी
परिभाषाओं के अर्थ
फिर, जब 'आदमी' हो जाता है तो
रचता है
नई परिभाषाएँ-
घर, आंगन, सड़क
और
आदमी की।
१२ दिसंबर
२०११ |