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नन्हीं सीखों से बड़ा (दोहे)
नन्ही सीखों से बड़ा, भला कौन सा ज्ञान।
माँ की बोली में बसे, गीता, वेद-पुरान॥
माँ सर्दी की धूप है,माँ गर्मी की छाँव।
माँ के आँचल से अधिक, नहीं सुरछित ठाँव॥
गोकुल जैसा दिन खिले, काशी जैसी शाम।
जीवन को पुलकित करे, माँ इक तेरा नाम॥
सीधा-साधा ओढ़ना, छोटा सा संसार।
घर में खुशियाँ भर रहा, अम्मा तेरा प्यार॥
माँ से ही पूरा रहा, ये सारा घर-बार।
हम उनका संसार हैं, माँ सबका संसार॥
जीवन भर बुनती रही, हम सबकी तकदीर।
माँ गुपचुप पीती रही, अपने मन की पीर॥
सेवा है माँ-बाप की, सबसे पावन काम।
घर बैठे कर लीजिए, पूरे चारों धाम॥
-सुबोध श्रीवास्तव
१५ अक्तूबर २०१२
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