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बेला के फूल
 

निश्छल सेवा जगत की,रही भावना मूल।
घर-आंगन महका रहे,हैं बेला के फूल।।

बगिया में यूं तो रहे,सुंदर पुष्प अनेक।
इक बेला की गंध से,मंत्रमुग्ध हर एक।।

मानव से है नेह का,बेला का संबंध।
इसीलिए बिखरा रहा,मोहक अतुल सुगंध।।

एक अकेला ही खड़ा,मौसम के प्रतिकूल।
बेला का हर क्षण रहा,जीवन के अनुकूल।।

पुष्पों का जीवन भला,बांटें अतुल सुगंध।
सदियों से उनका रहा,परहित से अनुबंध।।

वर्षा हो या शीत ऋतु,या गर्मी की रात।
बेला नित दिन ला रहा,खुश्बू की सौगात।।

बेला महका बज उठे, टूटे मन के तार।
व्याकुल गोरी हो रही, ताके घर के द्वार।।

- सुबोध श्रीवास्तव
२२ जून २०१५

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