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विविध सुरीली बोलियाँ, विविध अनूठे धर्म।
दिव्य, पूज्य भारत धरा, छुए विश्व का मर्म॥
अमर शहीदों ने दिया, मिटकर यह संदेश।
प्राणों से भी है अधिक, प्यारा हमको देश॥
आजादी तो मिल गयी, मिला नहीं अधिकार।
पहले हम लाचार थे, अब भी हैं लाचार॥
महलों वाले चल पड़े, हैं सूरज की ओर।
बस्ती में छाया हुआ, अंधियारा घनघोर॥
आजादी के वास्ते, मिटे अनगिनत वीर।
भ्रष्ट तंत्र अब लिख रहा, भारत की तकदीर॥
लोकतंत्र में दोस्तों, जनता है लाचार।
चाहे ये सरकार हो, चाहे वो सरकार॥
कान्हा फिर से छेड़ दो, बंशी की वो तान,
आकुल हो गोकुल गली, मथुरा करे बयान॥
-सुबोध श्रीवास्तव
१३ अगस्त २०१२
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