अनुभूति में
सुबोध श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
छंदमुक्त-
कविता के लिये
चीखना मना है
तटबंध
तुम मेरे लिये
भूकंप
सिलसिला
अंजुमन में-
आदमी कितना निराला
जलते सूरज की आँखों में
पत्थरों के इस शहर में
पीपल की छाँह
वादियों में
संकलन में-
गंगा-
एक अनूठी संस्कृति
शुभ दीपावली-
दीपों की माला सजी
दुल्हन सी सजी धरती
पीपल-
पीपल की छाँव
रघुनंदन वंदन-
पावन एक स्वरूप है
ममतामयी-
नन्हीं सीखों से बड़ा
मेरा भारत-
प्यारा हमको देश
लाल किला
वर्षा मंगल-
रिमझिम के बाद
फूल कनेर के-
कनेर का प्यार
बेला-
बेला के फूल
मातृभाषा के प्रति-
हिंदी का संसार |
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पीपल की छाँव
पीपल की छाँव कच्चे मकां मन को
भा गए,
घबरा गए शहर से तो फिर गाँव आ गए।
ऊँची इमारतों में भी मिलता नहीं सुकूँ,
हम जि़न्दगी के खेल में फिर मात खा गए।
मजहब को मानते तो न करते मुझे तबाह,
वो कैसे लोग थे जो मेरा घर जला गए।
आए तो बहुत लोग सहारा नहीं मिला,
बस बेबसी पे मेरी वो आँसू बहा गए।
मजबूरियों के मोड़ पे हम आके रुक गए,
जाते हुए ये काफिले हमको रुला गए।
जूड़े में फूल टाँक के बैठी हो तुम कहीं,
घर भर महक उठा है कि तुम याद आ गए।
मेरी वफा को भूल गए हैं वो बेवफा,
कुछ बावफा 'सुबोध' को फिर आजमा गए।
१ अगस्त २०११ |