सर आसमाँ पे रख
पैरोंतले ज़मीन रख सर आसमाँ पे रख
शोले जिगर में रख मगर शबनम जुबाँ पे रख
जंगल है दरिंदे यहाँ बैठे हैं घात में
आहट पे आँख, हाथ भी तीरो कमाँ पे रख
माँ बाप की खुशी यहाँ बेटों की फिक्र है
मंदिर है ये मकान तू माथा यहाँ पे रख
चिंगारियों का दौर है हर सू धुआँ उठे
अच्छा है तू भी इक नज़र अपने मकाँ पे रख
राहों की गर्द ही तुझे मंज़िल दिखाएगी
थोड़ा जुनूँ थोड़ा यकीं बस कारवाँ पे रख
बिख़रें कहीं न टूट के रिश्तों के आइने
लफ़्ज़ों पे रख लगाम तू काबू बयाँ पे रख
महकेगा दासताँ तेरी सदियों गुलाब-सी
हर गम़जदा के दर्द को तू जिस्मो जाँ पे रख
१ मई २००५
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