ग़म नहीं है
चलो माना कि वो हमदम नहीं है
पलट कर देखना कुछ कम नहीं है
मुहब्बत एक दिन दम तोड़ती है
वफ़ाओ पे अगर कायम नहीं है
सफ़र में हादिसे पीछा करेंगे
कसम से ज़िंदगी सरगम नहीं है
कई मौसम मेरी आँखों से गुज़रे
किसी पल चैन का मौसम नहीं है
हमारा हौसला तुम तोड़ दोगे
तुम्हारे पास वो दम ख़म नहीं है
नहीं मिलता कभी मसरुफ़ होगा
वगरना हम से वो बरहम नहीं है
चरागों की जगह अरमाँ जलेंगे
अंधेरों का हमें कुछ गम़ नहीं है
खुले छोड़े हुए हैं ज़ख़्म तनहा
हमारे ज़ख़्म का मरहम नहीं है
९ अक्तूबर २००५
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