दरो दीवार की हद से निकल के दरो दीवार की हद से निकल के
अकेले हर कदम रक्खो सँभल के
बदल डालो मआनी
ज़िंदगी के
कभी देखो किसी से दिल बदल के
सँभालो आईना ये काग़ज़ी है
गुरूरे-हुस्न का प्याला न छलके
मसाइल हल न होंगे खंजरों से
कटेगा हर सफ़र इक साथ चलके
जलाओगे हमें 'तनहा' जलोगे
मिटोगे शमे की मानिंद जल के
२५ फ़रवरी २००८
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