फिर वही तनहा सफ़र
फिर वही तनहा सफ़र हम क्या करें
दूर तक सूनी डगर हम क्या करें
वो हमीं से पूछते हैं, कौन हो
फासले और इस कदर हम क्या करें
ताड़ लेते हैं छुपी हर बात हम
ये हमारा है हुनर हम क्या करें
डालिये चिलमन न यों रुख़सार पे
हैं बहुत प्यासी नज़र हम क्या करें
जब से वो आकर नज़र पे छा गए
हम पे हैं सबकी नज़र हम क्या करें
इस तरफ़ मंदिर, उधर हैं मस्जिदें
'वो' नहीं दिखता मगर हम क्या करें
है ख़बर सबको हमारे इश्क की
आप हैं गर बेख़बर हम क्या करें
कल तलक डर था लुटेरों का हमें
आज है मज़हब का डर हम क्या करें
१ मई २००५
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