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अनुभूति में प्रमोद कुमार कुश तनहा की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
आग अश्कों से लगा लेंगे
दरो दीवार की हद से निकल के
रात हमने नींद ली
हम ये समझे थे

अंजुमन में-
ग़म नहीं है
चांद की तलाश में
फिर वही तनहा सफ़र
बाज़ार चल रहा है
बेशक हुआ करे
सर आसमाँ पे रख
वो कहीं टकराएँ तो
सिर्फ़ हम थे
हम चल दिए

 

फिर वही तनहा सफ़र

फिर वही तनहा सफ़र हम क्या करें
दूर तक सूनी डगर हम क्या करें

वो हमीं से पूछते हैं, कौन हो
फासले और इस कदर हम क्या करें

ताड़ लेते हैं छुपी हर बात हम
ये हमारा है हुनर हम क्या करें

डालिये चिलमन न यों रुख़सार पे
हैं बहुत प्यासी नज़र हम क्या करें

जब से वो आकर नज़र पे छा गए
हम पे हैं सबकी नज़र हम क्या करें

इस तरफ़ मंदिर, उधर हैं मस्जिदें
'वो' नहीं दिखता मगर हम क्या करें

है ख़बर सबको हमारे इश्क की
आप हैं गर बेख़बर हम क्या करें

कल तलक डर था लुटेरों का हमें
आज है मज़हब का डर हम क्या करें

१ मई २००५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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