हम चल दिए
हम चले हम चल दिए हम चल पड़े
आज फिर माथे पे उनके बल पड़े
नींद सहलाएगी माथा उम्र भर
आँख पे माँ का अगर आँचल पड़े
आज हम पे आ पड़ा है वक्त ये
आप की किस्मत में शायद कल पड़े
रुक गए मेरे कदम क्यों दफअतन
रास्ते कुछ दूर जो समतल पड़े
ख़त मिला बेटे का बूढ़े बाप को
बाप की आँखों से मोती ढ़ल पड़े
रात गुज़री किस तरह मत पूछिए
देखिए बिस्तर में कितने सल पड़े
इक तसव्वुर एक 'तनहा' रात थी
हर तरफ़ लाखों दिए क्यों जल पड़े
१ मई २००५
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