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अनुभूति में प्रमोद कुमार कुश तनहा की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
आग अश्कों से लगा लेंगे
दरो दीवार की हद से निकल के
रात हमने नींद ली
हम ये समझे थे

अंजुमन में-
ग़म नहीं है
चांद की तलाश में
फिर वही तनहा सफ़र
बाज़ार चल रहा है
बेशक हुआ करे
सर आसमाँ पे रख
वो कहीं टकराएँ तो
सिर्फ़ हम थे
हम चल दिए

 

रात हमने नींद ली

रात हमने नींद ली आराम की
ज़िंदगी लगने लगी अब काम की

ज़िंदगी क्या है हुआ एहसास तो
ज़िंदगी हमने तुम्हारे नाम की

बन गईं फैशन की खबरें सुर्खियाँ
दब गई हर बात कत्ले-आम की

आप के होठों ने जब से छू लिया
खुल गई तक़दीर खाली जाम की

छोडिए किस्से वफ़ा-ओ-इश्क के
आइए बातें करें कुछ काम की

सिर्फ़ लिखते हैं ग़ज़ल बेबह्र वो
फिर मिली उनको सज़ा ईनाम की

२५ फ़रवरी २००८

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