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अनुभूति में प्रमोद कुमार कुश तनहा की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
आग अश्कों से लगा लेंगे
दरो दीवार की हद से निकल के
रात हमने नींद ली
हम ये समझे थे

अंजुमन में-
ग़म नहीं है
चांद की तलाश में
फिर वही तनहा सफ़र
बाज़ार चल रहा है
बेशक हुआ करे
सर आसमाँ पे रख
वो कहीं टकराएँ तो
सिर्फ़ हम थे
हम चल दिए

 

चाँद की तलाश में

इक चाँद की तलाश में भटके हैं रात भर
तारों के साथ साथ हम जागे हैं रात भर

रंजिश है या कि इश्क है कुछ तो ज़रूर है
लेकर हमारा नाम वो सिसके हैं रात भर

खामोश हैं वो ये कहीं इकरार ही न हो
खुद को तसल्लियाँ यही देते हैं रात भर

जुड़ते नहीं हैं पूछ कर चाहत के सिलसिले
रिश्ते हों बेजुबान तो रिसते हैं रात भर

दिन भर जो सिर्फ़ बन के धुआँ घूमते रहे
बादल मेरी निगाह के बरसे हैं रात भर

मिलती नहीं जगह कहीं 'तनहा' सुकून की
ख़्वाबों की अंजुमन को भी तरसे हैं रात भर

१ मई २००५

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