अनुभूति में
चाँद शेरी की रचनाएँ—
नई रचनाओं में-
अपने जीवन में
काले काले बादल भी ला
बरसात होगी
लोग जिसको ताज पहनाने चले
सहमी सहमी
अंजुमन में—
अमृत का पियाला
आज का रांझा
चंदन तन
मुल्क
वक्त भी कैसी पहेली
शहरे वफ़ा
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वक्त भी कैसी
पहेली
वक्त भी कैसी पहेली दे गया
उलझने सौ जां अकेली दे गया।
ब्याह बेटी का रचाना था हमें
कर्ज़ की ख़ातिर हवेली दे गया।
पढ़ के रेखाएं वो मेरे हाथ की
और भी खाली हथेली दे गया।
चल दिया वो कह के कड़वी बात यूं
जैसे मुझ को गुड़ की भेली दे गया।
ख़ार क्यों बोते हो उसकी राह में
जो तुम्हें बेला चमेली दे गया।
और करता लालची ससुराल क्या
आग में दुल्हन नवेली दे गया।
ग़म ग़लत करने को वो 'शेरी' मुझे
शायरी जैसी सहेली दे गया।
१५ अगस्त २००४
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