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आज का रांझा
चंदन तन
मुल्क
वक्त भी कैसी पहेली
शहरे वफ़ा

 

 

शहरे वफ़ा

शहरे – वफ़ा का आज ये कैसा रिवाज़ है
मतलबपरस्त अपनों का ख़ालिस मिज़ाज है।

फुटपाथ से ग़रीबी ये कहती है चीख कर
क्यों भूख और प्यास का मुझ पर ही राज है।

जलती रहेंगी बेटियां यूं ही दहेज पर
कानून में सुबूत का जब तक रिवाज़ है।

शायद इसी का नाम तरक्की है दोस्तो
नंगी सड़क पे हर बहू बेटी की लाज है।

क्या जाने क्या हो देश का अंजाम देखिए
इंसानियत के खून से महंगा अनाज है।

जब से ग़ुलाम पैरों की टूटी है बेड़ियां
सर पर हरेक शख्.स के कांटों का ताज है।

उन रहबरों का हाल न ‘शेरी’ से पूछिए
ख़ालिस लुटेरों जैसा ही जिन का मिज़ाज है।

१५ अगस्त २००४

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