अनुभूति में
चाँद शेरी की रचनाएँ—
नई रचनाओं में-
अपने जीवन में
काले काले बादल भी ला
बरसात होगी
लोग जिसको ताज पहनाने चले
सहमी सहमी
अंजुमन में—
अमृत का पियाला
आज का रांझा
चंदन तन
मुल्क
वक्त भी कैसी पहेली
शहरे वफ़ा
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सहमी सहमी
सहमी-सहमी है
सड़क पर ज़िंदगी
हादसों ने की है दूभर ज़िंदगी।
यों घिरी है दायरे में वक्त के
कैद लगती है कलेण्डर ज़िंदगी।
रिस रहा है आदमी नासूर सा
सड़ रही है कोढ़ बनकर ज़िंदगी।
हर तरफ़ गहरी नशीली साजिशें
बन गई हर गाग तस्कर ज़िंदगी।
झोपड़ों में साँस लेना भी कठिन
और महलों में मुअतर ज़िंदगी।
हो दिलों से दूर ’शेरी‘ नफ़रतें
वर्ना होगी बद से बदतर ज़िंदगी।
२४ दिसंबर २०१२
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