|
सितम बाग़बानों, ने
सितम बाग़बानों, ने ढाया तो है
चमन अपने हाथों, मिटाया तो है
जो मुरझा गया फूल, खिल के तो क्या
घड़ी दो घड़ी, मुस्कराया तो है
मेरी खैरियत, पूछ ली गै़र से
ख़याल आज उसे, मेरा आया तो है
वफ़ा को मेरी कोई भी नाम दो
मगर मैंने वादा, निभाया तो है
नहीं छत तो ‘अनजान’कुछ ग़म नहीं
कि सर पर मेरी माँ का साया तो है
१ अक्तूबर २०१८
|