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कैसी ये दोस्ती है
कैसी ये दोस्ती है, कहाँ का ये
प्यार है
मेरा ही घर जला रहा, जो मेरा यार है
सहमी हुई है रूह भी, मन तार-तार है
बारूद के पहाड़ पे, दुनिया सवार है
कैसी घटायें छायीं, चली क्या बयार है
उल्फ़त की वादियों में ग़मों की बहार है
होगा जो होना होगा, नहीं सोचना है अब
अब के मिले तो फ़ैसला, बस आर पार है
कैसी ये कशमकश है मेरा ख़ुद पे बस नहीं
नफ़रत है उनको मुझसे, मुझे उनसे प्यार है
‘अनजान’के हवाले करें, ख़ुद को हम सभी
हर सिम्त नफ़रतों की, यहाँ तो बहार है
१ अक्तूबर २०१८
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