झिलमिलाते हुए दिन
रात झिलमिलाते हुए दिन
रात हमारे लेकर,
कौन आया है हथेली पे सितारे लेकर।
हम उसे आँखों की देहरी नहीं
चढ़ने देते,
नींद आती न अगर ख्व़ाब तुम्हारे लेकर।
रात लाई है सितारों से सजी
कंदीलें,
सरानिगूँ दिन है धनक वाले नज़ारे लेकर।
एक उम्मीद बड़ी दूर तलक जाती
है,
तेरी आवाज़ के ख़ामोश इशारे लेकर।
रात, शबनम से भिगो जाती है
चेहरा चेहरा,
दिन चला आता है आँखों में शरारे लेकर।
एक दिन उसने मुझे पाक नज़र से
चूमा,
उम्र भर चलना पड़ा मुझको सहारे लेकर।
२४ मई २००५ |