अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आलोक श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
झाँकता है
मंज़िल पे ध्यान
मंज़िलें क्या हैं
याद आता है
सारा बदन

अंजुमन में-
अगर सफ़र में
ठीक हुआ

तुम सोच रहे हो
पिया को जो न मैं देखूँ
बूढ़ा टपरा
मैंने देखा है
ज़रा पाने की चाहत में
झिलमिलाते हुए दिन रात
ये सोचना ग़लत है
हम तो ये बात जान के
हरेक लम्हा

संकलन में-
ममतामयी-अम्मा
पिता की तस्वीर-बाबू जी

दोहों में-
सात दोहे

  सात दोहे

आँखों में लग जाएँ तो, नाहक निकले खून,
बेहतर है छोटे रखें, रिश्तों के नाखून

भौचक्की है आत्मा, सांसें भी हैरान,
हुक्म दिया है जिस्म ने, ख़ाली करो मकान।

तुझमें मेरा मन हुआ, कुछ ऐसा तल्लीन,
जैसे गाए डूब के, मीरा को परवीन।

जोधपुरी साफ़ा, छड़ी, जीने का अंदाज़,
घर-भर की पहचान थे, बाबूजी के नाज़।

कल महफ़िल में रात भर, झूमा खूब गिटार,
सौतेला-सा एक तरफ़, रक्खा रहा सितार।

फूलों-सा तन ज़िंदगी, धड़कन जिसे फांस,
दो तोले का जिस्म हैं, सौ-सौ टन की सांस।

चंदा कल आया नहीं, लेकर जब बारात,
हीरा खा कर सो गई, एक दुखियारी रात।

१६ जनवरी २००५

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter