हम तो ये बात जान
के
हम तो ये बात जान के हैरान हैं
बहुत,
ख़ामोशियों में शोर के इम्कान हैं बहुत।
बाज़ार जा के खुद का कभी दाम
पूछना,
तुम जैसे हर दुकान में सामान हैं बहुत।
दुनिया के कारोबार में आँखें
खुली रखो,
ख़्वाबों के लेन देन में नुकसान हैं बहुत।
आवाज़ बर्तनों की घर में दबी
रहे,
बाहर जो सुनने वाले हैं शैतान हैं बहुत।
खुशहाल घर को जाने नज़र किसकी
लग गई,
हम लोग कुछ दिनों परेशान हैं बहुत।
आवाज़ साथ है न बदन का कहीं
पता,
अब के सफ़र में रास्ते सुनसान हैं बहुत।
१ मार्च २००५ |