राम का
ही नाम है
जिसको सुमरता आदमी
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हर घड़ी हर पल
जीता रोज ही संघर्ष
संस्कारों में
छिपा इस उम्र का उत्कर्ष
ज़िंदगी संग्राम है
इस सच से डरता आदमी
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है मिला उपहार
सृष्टि का यही वरदान
बन गया संबल
धरती पर सबल प्रतिदान
बस सुबह से शाम है
दिन भर गुजरता आदमी
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व्यर्थ ढोता मोह
माया जानता ठगनी
काम आयेगी
सदा ही सत्य की करनी
राम शीतल घाम हैं
तपकर निखरता आदमी
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- जयप्रकाश श्रीवास्तव
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