करुणामय रघुनंद

 
  अवधपुरी में चल पड़ी, उत्सव भरी बतास
सरयू बड़भागी हुई, पूरी जन की आस

राम नाम वह सत्य है, जिसमें रहते राम
पृथ्वी के हर कथ्य में, बसते राजाराम

राम उसी को मिलेंगे, जिसे मिला हो सत्य
रघुनंदन को प्रिय रहे, मर्यादित सातत्य

मर्यादा में डटे थे, रघुकुल आनंदकंद
जिसने देखा कह उठा, पुष्प बीच मकरंद

राम लला मां जानकी, लक्ष्मण प्यारे तात
दशरथ जैसे विटप पर, लगते ऐसे पात

सिया सलौनी चल पड़ीं,महल अटारी छोड़
कंचन मृग मारीचिका, पाये अंधे मोड़

दशरथ के सुत चार हैं, कौशल्या सुत एक
राम बिना उनको मिले, दुख के रूप अनेक

रची न होती ऋषी ने, राम कथा अनमोल
कैसे मिलता जगत को, मर्यादा का मोल

तुलसी ने रुचि रुचि लिखा, चरित राम मकरंद
कामी क्रोधी भी पढ़े, पा जाए आनंद

अविरल धारा सत्य की, बहती सरयू संग
रघुकुल में शामिल हुए, सात्विक गुण सारंग

वनवासी हो राम ने, जंगल किया सनाथ
शबरी,बाली को मिले, प्रेमी भ्राता साथ

मर्यादा टिकती तभी, जब हो त्यागी वीर
कौशल्या के राम ने, मन में साधा धीर

रामलला के भवन में, उतरेंगे राकेश
बिजना बन डोले पवन, मुस्काए शैलेश

पृथ्वी के आँगन उगा, रघुकुल भानु स्वरूप
धन्य सनातन धर्म है, संयम सत्य अनूप

ले चल मनवा उस जगह, जहाँ सिया के राम
आपाधापी में मिले, जीवन को आराम

कपट कटारी साथ ले, माँगे उर आनंद
बोलो कैसे आ बसें, करुणामय रघुनंद

- कल्पना मनोरमा
१ अप्रैल २०२४

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