महिमा अपरम्पार

 
  राम की महिमा अपरम्पार
जो भी जपता रामनाम वो
होता भव से पार

सब है मिथ्या जग है सपना
कोई नहीं तेरा है अपना
राम नाम बस एक सत्य है
जीवन का है सार
जो देता नाम से ही बस तार
राम की महिमा अपरम्पार

नश्वर काया नश्वर माया
साथ न दे अपना हमसाया
अपने तनमन से ही बंदे
जाता जब तू हार,
लगाते राम ही बेड़ा पार
राम की महिमा अपरम्पार

हर युग के आदर्श राम हैं
तीरथ के वो चारों धाम हैं
वो ही संत समागम हैं और
सरयू की पावन धार
करे बस राम नाम उद्धार
राम की महिमा अपरम्पार

लिखा राम का नाम तो पत्थर
भी तैरे हैं बीच समंदर
मनके मनके जोड़ के तू भी
जोड़ ले उनसे तार
राम हैं जीवन का आधार
राम की महिमा अपरम्पार

- मंजू सक्सेना
१ अप्रैल २०२४

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