राम आए अवध में

 
  भाग जागे हैं भुवन के
सच हुए सपने नयन के
हो गईं स्वीकार मन की
चिर-प्रतीक्षित प्रार्थनाएँ
राम आए अवध में
पूरी हुई सब कामनाएँ

हो गई पूरी समय के
धैर्य की दुष्कर परीक्षा
दरस पाकर हुई प्रभु के
सुफल सदियों की प्रतीक्षा
हो गये पूरे मनोरथ
मिल गया भटकाव को पथ
हो गई साकार जीवन की
सभी शुभकल्पनाएँ

पा गई, नूतन अयोध्या
फिर वही वैभव पुराना
मिल गया मन की भटकती
साधनाओं को ठिकाना
गूँजती ध्वनियाँ सुमंगल
उड़ रही है गंध सन्दल
भर उठा विश्वास से मन
हो गईं दृढ़ आस्थाएँ

उमग कर सरयू तटों की
सीढ़ियाँ चढ़ने लगी है
दीप हाथों में लिये लहरें
मगन बढ़ने लगी हैं
धार हुलसित बह रही है
इक कहानी कह रही है
हो गई मुखरित अचानक
मौन वो सारी कथाएँ

चीर कर सारे कुहासे
सत्य का सूरज उगा है
फिर नया अध्याय युग के
पृष्ठ से जुड़ने लगा है
चेतना लौटी स्वरों में
प्राण जागे पत्थरों में
शापमोचित हो गई हैं
काल की खण्डित शिलाएँ

- मधु शुक्ला
१ अप्रैल २०२४

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