राम का ही नाम

 
  राम का ही नाम है
जिसको सुमरता आदमी

हर घड़ी हर पल
जीता रोज ही संघर्ष
संस्कारों में
छिपा इस उम्र का उत्कर्ष
ज़िंदगी संग्राम है
इस सच से डरता आदमी

है मिला उपहार
सृष्टि का यही वरदान
बन गया संबल
धरती पर सबल प्रतिदान
बस सुबह से शाम है
दिन भर गुजरता आदमी

व्यर्थ ढोता मोह
माया जानता ठगनी
काम आयेगी
सदा ही सत्य की करनी
राम शीतल घाम हैं
तपकर निखरता आदमी

- जयप्रकाश श्रीवास्तव
१ अप्रैल २०२४

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