सिय हिय उठी हिलोर

 
  दम दम दमकी दामिनी, घन घनके घनघोर
मिले नयन जब राम से सिय हिय उठी हिलोर

एक निमिष जब राम ने किया दृष्टि संधान
सुध बुध भूलीं जानकी, नहीं रहा कुछ भान

दृष्टिपात जब राम का, हुआ सिया की ओर
दसों दिशाएँ हँस पड़ीं, फड़के नभ को छोर

आकुल व्याकुल जानकी, बँधी लाज के पाश
राम बसे सिय के हृदय, विहँसे भू-आकाश

सीता के हिय में बसे, राम बने चितचोर
भरे कुलाँचे कामना, नाचे हिय का मोर

छवि सीता ने कैद की, पलक-द्वार कर बंद
हृदय पृष्ठ पर है स्वतः अंकित सहस्त्र छंद

दीपशिखा-सी चमक उठी तमस छँटा हृद देश
जगर-मगर सौंदर्य से, अंतरतम परिवेश

चढ़ी नयन के द्वार सिय, राम-हृदय आगार
पलक झुका प्रभु राम ने, स्वीकारा आभार

- कुँअर उदयसिंह अनुज
१ अप्रैल २०२४

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