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शूल
हों या फूल |
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फर्क क्या है? शूल हों या
फूल
महल के सुख या वनों की धूल
पिता का आदेश मंगल कामना
सौभाग्य के आगे बढ़े थे चरण
राजतिलक छूटा तो क्या हुआ
अरण्य में होगा विचरण
झूलना है जिन्दगी, आनन्द है
सुख, विपत्ती, बीच में तू झूल
अग्नि-परीक्षा मंच पर ज्यों स्वांग था
भावना के मेघ छाये थे घने
आज पत्नी-त्याग भी मेरे लिये
निराशा, कुंठा का कारण क्यों बने
हर्ष और संताप में जो दूरियाँ
ना दिखी, इस राम की क्या भूल
ज्ञान कम था कहाँ लंकाधीश में
व्यर्थ था बस, दंभ का ही जोर था
युद्ध रावण से किया जिसके लिये
त्याग सीता का, मिलन का छोर था
विधाता की सृष्टि में दो अंग हैं
आम मीठे, शूल युक्त बबूल
फर्क क्या है? शूल हों या फूल
महल के सुख या वनों की धूल
- हरिहर झा
१ अप्रैल २०२४ |
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