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लोग बस्ती के |
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रीढ़ को बोझे झुकाएँ
घर-गृहस्थी के
और ले आये बखेड़े
लोग बस्ती के
रेत के सूखे कणों में
स्रोत जल ढूँढे़
तोड़ते तटबंध चढ़कर
धूप के बूढे
भूल बैठी नाव फिर से
घाट-गश्ती के
फड़फड़ाती पंख चिड़िया
गिन रही तिनके
घोंसलों के पास बिखरे
खण्डहर जिनके
याद आते आज वे दिन
मौज-मस्ती के
खेत पर सरसों खड़ी
सब अटकलें सुनती
धार पैनी फाँसने को
पल नये बुनती
तेल की परछाइयों में
बोल हस्ती के
1
- रामकिशोर
दाहिया |
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इस माह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
छोटे छंदों में-
पुनर्पाठ में-
विगत माह
नव वर्ष के अवसर
पर
पतंग विशेषांक के अंतर्गत
गीतों में-
आकुल,
आचार्य श्रीधर
शील,
उषा
गोस्वामी,
उमा प्रसाद लोधी,
ऋता शेखर
मधु,
जयप्रकाश
श्रीवास्तव,
धर्मेन्द्र
कुमार सिंह,
नितिन उपाध्ये,
पद्मा
मिश्रा,
पुष्पलता शर्मा,
पूर्णिमा
वर्मन,
प्रताप
नारायण सिंह,
मधु प्रधान,
मधु शुक्ला,
मधु संधु,
योगेन्द्र
प्रताप मौर्य,
रंजना
गुप्ता,
शशि पाधा,
शिवजी
श्रीवास्तव,
शीला पांडे,
हरिहर झा। दोहों में-
कुमार गौरव अजीतेन्दु,
ज्योतिर्मयी
पंत,
परमजीत कौर
रीत,
पारुल तोमर,
मंजु गुप्ता,
रचना वर्मा,
सत्यशील राम त्रिपाठी,
स्मृति
गुप्ता,
त्रिलोक
सिंह ठकुरेला। अंजुमन में-
कमलेश कुमार
दीवान,
रमा प्रवीर वर्मा,
सुरेन्द्रपाल वैद्य
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