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     .   मन पतंग

 
रंग-बिरंगी मन-पतंग पर
अनुशासन की डोर

ऊपर जाने की लगी लगन
मिला पतंग को वृहद गगन
इधर उधर सपनों-सी डोले
आधेमुँदे नयन में मगन
ठंड गुलाबी मकर रेख पर
आशाओं की भोर

किसको कैसी डोर मिली है
किसको कैसा साथ मिला
अनजानी रह गई पतंग को
किसी से कोई नहीं गिला
पेंच लड़ा खुश हुए खिलाड़ी
उलझ गया है छोर

प्रीत पतंग बसे जीवन में
कौशल रहे उड़ाने का
खुशियाँ रहे तरंगें बनकर
जोश रहे बह जाने का
पर्व लिए आया उमंग को
लेना खूब बटोर

पूँछ सहित मछली ड्रैगन बन
नभ में उड़ती रही पतंग
देख- देख कर आह्लादित हैं
धरती पर के मस्त मलंग
संस्कारों के धागे लिपटे
जीवन में चहुँ ओर

– ऋता शेखर ‘मधु’
१ जनवरी २०२३

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