अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     .पतंग एक प्यार है

 
पतंग एक प्यार है

रूप बदले, रंग बदले
आभरण सुन्दर मढ़े
झोंके हवा के, पथ नए
नादान जैसे गढ़ लिए
आसमाँ में झाँकती दृष्टि बारंबार है

विछोह भी है, मिलन भी
सकून इसी में साधना
प्रेम के कोड़े पवन में
दर्द-ए-दिल से बाँधना
खुले नभ में मेल है हृदय में अभिसार है

डाल डोरे वासना के
विषधर माँझा आए जब
ईर्ष्या, जलन रॉकेट बन
बयार से टकराए जब
नियंत्रण, शांत नैनो के नजर की मार है

जाऊँ कैसे कब जाऊँ
राहें सुरक्षित है नहीं
भेंट हो जाए कहीं पर
साजन प्रतीक्षित है नहीं
जल गया दौर्बल्य, बस भय क्षितिज के पार है

- हरिहर झा
१ जनवरी २०२३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter