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साहस
भरी पतंग |
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आशाओं की डोर पर, भर सपनों
में रंग
आसमान छूती रही, साहस भरी पतंग
सारे संशय भूलकर, जो बढ़ता है झूम
वह पतंग सा अन्ततः, नभ को लेता चूम
कोई भी आकार हो, कोई भी हो रंग
उचित युक्ति को साधकर, पाती लक्ष्य पतंग
कभी शिथिलता सुखभरी, झेले कभी तनाव
जीवन के इस द्वंद में, हो पतंग सा चाव
कब बदलेगी रुख हवा, किसको यह पहचान
जब तक सब अनुकूल है, रच पतंग प्रतिमान
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
१ जनवरी २०२३ |
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