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लिये हाथ में डोर |
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आलू, भांटा, लाल टमाटर
चोखा, चटनी, घी, खिचड़ी
गही हाथ में डोर पतंगें
दौड़ लगी छत पर तगड़ी
अम्बर उड़ीं, गिरीं कुछ नीचे
कटी-कटी रे नई-नई
ढील छोड़कर, कसी जरा सी
डोर तनी रे अहा ! भई
झाँसा देकर गले मिलन का
नीली वाली है झगड़ी
अक्कड़-बक्कड़, भूल-भुलैया
रंग-बिरंगी गुँथीं कई
खींचो, तानों, काटो-काटो
छोड़ो माँझे अरे, भई !
चप्पल छूटी, ऐनक नीचे
गिरी पड़ी किसकी पगड़ी?
शीतकाल की धूप गुनगुनी
तनी पतंगें जीवन की
भूख प्यास की दौड़ा-दौड़ी-
छौंक लगी खिचड़ी मन की
हवा ताल पर आवाजाही
बाजी खेल हँसीं, तगड़ी-
शीला पांडे
१ जनवरी २०२३ |
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