अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

        सुंदर पतंगें

 
देखिए तो मन सभी के खूब भाती जा रही हैं
आ गयी बहकी हवाएँ सरसराती जा रही हैं

नील नभ पर कर रही अठखेलियाँ सुन्दर पतंगें
बिन कहे कुछ नव उमंगों को उड़ाती जा रही हैं

कुछ पतंगों के हृदय में मुक्त होने की तमन्ना
टूटती है डोर जब भी मुक्ति पाती जा रही हैं

हैं चटक से इंद्रधनुषी रंग खिलकर बिछ गये ज्यों
जब घटाएँ ही पतंगों को सजाती जा रही हैं

भिन्न हैं आकार इनके किन्तु चाहत एक सबकी
छोड़ कर पीछे सभी उस पार जाती जा रही हैं

उड़ रहे हैं सिन्धु तट पर जिस तरह सुन्दर परिंदे
दृश्य नैसर्गिक हवाएँ सब बनाती जा रही हैं

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ जनवरी २०२३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter