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     .नभ में पतंगें

 
रच रहीं कौतुक नए क्या
नाचतीं नभ में पतंगें

गगन सर में तैरतीं सी
ज्यों कि चंचल मछलियाँ
या कि नन्दन वन में
उड़ती हों मनोहर तितलियाँ

अप्सराओं सी सजी
इठला रहीं सबको लुभातीं
बाँचती कोई कथा
उल्लास की नभ में पतंगें

एक पतली डोर से
अस्तित्त्व निज बाँधे पतंगें
नटनियों जैसी
हवा में संतुलन साधे पतंगें

डोर टूटी, खेल छूटा
लड़खड़ा भू पर गिरीं
क्या अजब कौतुक पतंग को
काटतीं नभ में पतंगें

- शिवजी श्रीवास्तव
१ जनवरी २०२३

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