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     पतंग की मनुहार

 
मृदुल भले ही डोर हो ऊँची भरे उड़ान
निधड़क नभ में डोलती करें न तनिक गुमान

हँसी-ठिठोली से भरी पतंग की मनुहार
ले माँझा-चरखी सभी जोड़ें मन के तार

फिर पतंग सबसे करे रह रह वही सवाल
तज आए बचपन कहाँ खुशियाँ हुईं मुहाल

बचपन के सपने छिने, छिनी सारी तरंग
त्योहारों पर भी कहीं उड़ती नहीं पतंग

हँसी-खुशी का मूल है पतंग की इक डोर
तन-मन में साहस भरे उड़ती नभ की ओर

लड़ते पेंच पतंग के मचा गाँव में शोर
चंचल लूट पतंग को चहके बाल किशोर

सजी पतंगें परी-सी, बाँध खुशी की डोर
रंग-बिरंगे हो चले धरा-गगन हर ओर

- पारुल तोमर
१ जनवरी २०२३

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