रंग-बिरंगे दीप जले हैं, दीवाली की
रात में।
अंधियारे पर हुई चढ़ाई, दीवाली की रात में।
अम्बर के जितने थे तारे
उतर पड़े धरती पर सारे।
जगमग करते तम को हरते
कभी नहीं हैं हिम्मत हारे।
खिलखिला रही फुलझड़ियाँ, मिलकर सबके साथ में।
रंग-बिरंगे दीप जले हैं, दीवाली की रात में।
छुटे पटाखे हुआ उजाला
खुशियों को बरसाने वाला।
बना टोलियाँ थिरक रही हैं
घर-द्वारे दीपों की माला।
खील-बताशे भी मुसकाए, बच्चों की
बारात में।
रंग-बिरंगे दीप जले हैं, दीवाली की रात में।
आने लगा हवा का झोंका
अंधियारे ने उसको रोका
आज रात आराम करो तुम
देना मत बच्चों को धोखा।
नन्हें दीपों को हँसने दो, बैठ-बैठ
कर पात में।
रंग-बिरंगे दीप जले हैं, दीवाली की रात में।
--रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु |