आँगन-आँगन दीप धरें
यह अंधकार बुहरेंहोता ही आया तम से रण
पर तम से तो हारी न किरण
जय करें वरण ये अथक चरण
भू-नभ को नाप धरें
आँगन-आँगन दीप धरें
यह अंधकार बुहरें
लोक-हृदय आलोक-लोक हो
शोक-ग्रसित भव विगत-शोक हो
तमस-पटल के पार नोक हो
यों शर-संधान करें
आँगन-आँगन दीप धरें
यह अंधकार बुहरें
डूबे कलरव में नीरवता
भर दे कोमलता लता-लता
पत्ता-पत्ता हर्ष का पता
दे, ज्योतित सुमन झरें
आँगन-आँगन दीप धरें
यह अंधकार बुहरें
--डॉ. राजेन्द्र गौतम |